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- तार अवतारी कृष्ण प्राकट्य अंकुर। वृन्दावने नव कामदेव सर्वमूल।।
- प्राकृताप्रकृत जनो कन्दर्पेर गण। प्रथम कोमल स्कन्ध अंश मनोरम।।
- आगमादि शास्त्रे गायत्री काम-बीजे। तार उपासना करे सर्वभावे भजे।।
- कोटि मनोरथ एइ रूपेर प्रकाश। सर्विचित्त आकर्षक सहज विलास।।
- लावण्य मधुरोत्तम अमृतेर सिन्धु। महानुभावचये अनुभाव बिन्दु।।
- सेइ सेइ महा महा प्रभावेर गण। महा महाशय सबे करे आस्वादन।।
- अद्यावधि मदनगोपाल रूप धरि। वृन्दावने विराजये संगे गोपनारी।।
- सर्व-अवतार-बीज माधुर्य आलय। वैदग्ध्य चातुर्य सर्व रसेर आश्रय।।
- एइ कृष्ण आराधिबु मोर मने लय। जाते लोभि हय मन सेइ से मिलय।।
- जय जय रासलीला जय रास लीला। अहर्निशि एइ लीला येह घोषाइला।।
- कृष्ण विदग्धता-भेरी सस्वन बाजाय। राधार सौभाग्यमय दुन्दुभि घोषय।। 3।।
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