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- राधिकार सखीभाव लीलाशुक मने। प्रकट हइलो ग्रंथे ताहारि वचने।।
- बाह्यदशार अर्थ एबे कहिए इहार। संगी प्रति लीलाशुक जे कैल प्रचार।।
- पूर्वे जे कहिलाम वस्तु नियम तोमारे। केवल से वस्तु नहे आर आछे आरे।।
- आमरा सबाइ जार करि आराधने। ब्रह्मा शुक आदि तारे करिला स्तवने।।
- सेइ जे किशोर श्याम करि आराधन। आश्रयणीय तेंइ सर्व नायक उत्तम।।
- विशेषे कालिन्दीकूले सदाइ विलासे। अतिशय सुमाधुरी जाहाते प्रकाशे।।
- कहितेइ जेने रासे गोपांगना आनि। उपेक्षा करये हेनो कहे भंगीवाणी।।
- प्रार्थना जनाय ताते वचन कौशले। एइ स्फूर्ति लीलाशुक कये सत्त्वरे।।
- वैदग्ध्य चापल्य निज प्रकाश करिला। मोहनत्व आपनार ताते जानाइला।।
- तारा जे चपलागण अपांगछटाते। मन्थर हइलो एइ प्रेमवश्य रीते।।
- राधिकादि मुखचंद्र दर्शन हइते। उछलिलो लावण्य अमृतसिन्धु जाते।।
- ताहार तरंगें तारे तृषित करिया। ता सबारे देखे जेहों सुखविष्ट हैया।।
- एइतो सौन्दर्य पूर्ण इहाते प्रकाश। अन्योन्ये चपलनेत्र मुखे मृदु हास।।
- वेणुध्वनि करि आकर्षिला लक्ष्मीगण। कटाक्षे पूजिला तारा लोभी हैया मन।।
- नारीगण मनोहारी लीलाय प्रकाश। ना पाइला संगी लक्ष्मी गेला दुःखे वास।।
- चतुर्व्यूह अन्तरेते जतो कामगण। प्रद्युम्नाख्य आदि स्वरूप मनोरम।।
- शाखा स्थानीगण आर आछे कत कत। तार अंश लेशाभास रूप जन जत।।
- अनन्त वैकुण्ठ मध्ये जतो कामगण। पत्र स्थानीय आछे तार ना हय गणन।।
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