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- एइरूप विवाद करि, स्थापि निज वाक्यावलि,
- कृष्णसने सेइ लीलाशुक।
- कहये विवाद जेइ, कृष्णकर्णामृत सेइ,
- शुनो सबे पाबे प्रेमसुख।।
- से सब श्लोकेर कथा, अमृत हैते परामृता,
- शुनो सबे एकमन करि।
- एकान्त लक्षण जाते, निष्ठा हय शुद्धमते,
- हेनो वाणी अति सुमाधुरी।।
- प्रथमे कहये हरि, शुनो लीलाशुक बोलि,
- चन्द्र-पद्म-आदि करि जत।
- मोर मुख वपु जतो, वर्णिला उपमा कतो,
- एबे केने ना वर्णो से मत।।
- इहा शुनि लीलाशुक, अन्तरे पाइला सुख,
- कृष्णपद – नख निरीक्षय।
- से शोभाते मग्न मन, ग्रन्थारम्भे जे वर्णन,
- सेइरूप श्लोक पढ़य।।95।।
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