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- किम्वा तोहे नमस्करि, मोरे बहु कृपा करि,
- यदि आसि दिले दरशन।
- तबे मोर नेत्र मने, आस्वाद कराओ क्षणे,
- पुनः पुनः करि नतिगण।।
- अतः पर कृष्णचंद्र, निज कान्तामृत बन्ध,
- लीलाशुक करेन वर्णन।
- अदर्शने दुःख दैन्य, दर्शने आनन्द जन्य,
- उनमाद प्रलाप वचन।।
- ताहा पुन शुनिबारे, कृष्णचंद्र साध करे,
- अतिशय आनन्दित हैया।
- लीलाशुक वर्णित नारे, नमस्करि मौन धरे,
- कृष्ण कहे से रीत देखिया।।
- शुनिबारे से वर्णन, -समुदाय विलक्षण,
- तार लागि तार सने श्याम।
- ईश्वरान्तर भजन, मन्द सब प्रार्थन,
- भावनिष्ठा करे उद्घाटन।।
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