श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
श्रील कविराज गोस्वामिपाद कहते हैं- सुरलीला में मधुपान के कारण मुख में मधुर ईषद् गन्ध विद्यमान है। श्री चैतन्यचरितामृत[1] में देखते हैं के सनातन गोस्वामिपाद के निकट श्रीकृष्णमाधुरी के रसउद्गार में श्रीमन्महाप्रभु ने यह श्लोक पढ़कर स्वयं इसकी व्याख्या माधुरी व्यक्त की है-
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मध्य लीला, परि. 21
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