श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
श्रीकृष्ण महामोहनता के समुद्र- तुल्य हैं, इनका कणांश पाकर ही कामदेव ने मोहनता शक्ति पाई है। साक्षात् मन्मथ शब्द से स्वयं कामदेव प्रद्मम्न को ही लक्ष्य किया गया है, प्राकृत कामदेव को नहीं, कारण- प्राकृत कामदेव स्वयं या साक्षात् रुप नहीं हैं, प्रद्मम्न के शक्तिकणा का आवेश पाकर ही विश्व को मुग्ध करनें में समर्थ हैं। अप्राकृत विषयों में उनकी शक्ति जरा भी सफल नहीं होती। मन्मथ शब्द के यौगिक अर्थ द्वारा मन्मथमन्मथ पद से श्रीवृजेन्द्रनन्दन का प्रद्मम्नरूपी मन्मथ का भी क्षोभकारित्व समझ में आता है।
श्रीलीलाशुक ने कहा- कामगायत्री कामबीज द्वारा ऐसे मदनमोहनरूप का ध्यान ही उनकी उपासना की विधि है। ये कोटिमदनविमोहन हैं, अशेष-चित्ताकर्षक हैं, सहजमधुरतर लावण्य के सुधासागर स्वरूप हैं। महानुभावगण इसी प्रकार महाभावगण इसी प्रकार महाभाव निवह से ही इसका अनुभव किया करते हैं। ये ही वृन्दावन में श्रीमन्मदनगोपाल रूप से नित्य विराजमान हैं। ये ही सभी अवतारों के बीज हैं, सभी माधुर्यों के निदान हैं। इसीलिए शास्त्रकारों ने मदनमोहन श्यामसुन्दर देव की सर्वलीलामुकुटमणि श्रीरासलीला का जयघोष किया है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ चै.च.
संबंधित लेख
क्रमांक | श्लोक संख्या | श्लोक | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज