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- चौद्द भुवनेश्वर श्रेष्ठ, सकलेर महा इष्ट,
- नीलमणि भूषण आमार।
- जतो व्रजनारीगण, निरुपम गुणगण,
- वक्षःस्थले बसति जाहार।।
- जलधि दुहिता जतो, लक्ष्मीगण आछे कतो,
- विष्णुरूपे पादसम्वाहये।
- निज पादस्पर्शे तार, कुचकुम्भ मनोहर,
- सेइ तार सदाइ बहये।।
- अखिल वैकुण्ठगण, प्रकाशादि मनोरम,
- विष्णुरूपे जे करे बसति।
- ताहार प्रेयसी जतो, लक्ष्मीगण अविरत,
- तार कण्ठे मणिरूपे स्थिति।।
- किम्वा लक्ष्मीगण जतो, जे आकर्षे अविरत,
- वेणु गान करि मनोरम।
- तार कुचकुम्भे सदा, ताप देन अविरता,
- तारे मुइ करउँ वन्दन।।
- अतः पर राधासने, आर गोपांगना सने,
- करे कृष्णलीला सविस्मय
- से शोभा देखिया लीला, शुक अति सुख पाइला,
- हर्ष भरे श्लोक उच्चारय।।90।।
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