श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
अनन्त ब्रह्माण्डराशि से संवलित मूल प्रकृति से बहुत दूर अमृतमय आस्वाद्य भगवज्ज्योति जयशील हो रही है- उसके भी अन्तस्थल में वैकुण्ठ- उसके भी अति रहःस्थल में कामबीजात्मक द्युतिशील आस्वाद्य वृन्दावन विराज रहा है। इसी स्थान में अति आश्चर्यजनक किशोरियाँ श्रीराधा-मुरलीधर का निरन्तर भजन कर रही हैं। वे (किशोरियाँ) एक- दूसरे के प्रति स्वाभाविक रूप से सुन्दर भावाविष्ट चित्त हैं, नवनवायमान वयस और रूपमाधुर्य से मण्डित हैं, महाप्रेमानन्द और उन्मादक रसचमत्कार की राशि को धारण करने वाली हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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