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- मानसंगा कालिन्दी, भुवन पावन नदी,
- कृष्ण यदि ताते करे स्नान।
- वेणुर झुटा अधररस, हइया लोभ-परवश,
- सेइ काले हर्षे करे पान।।
- एतो नारी, रहु दूरे, वृक्ष सब तार तीरे,
- तप करे, पर- उपकारी।
- नदीर शेष रस पाइया, मूलद्वारे आकर्षिया,
- केने पिये बुझिते ना पारि।।
- निजांकुरे पुलकित, पुष्पहास्य विकसित,
- मधु मिशे बहे अश्रुधार।
- वेणुके मानि निज जाति, आर्येर जेनो पुत्रनाति,
- वैष्णव हैले आनन्दविकार।।
- वेणुर तप जानि जबे, सेइ तप करि तबे,
- ए अयोग्य आमरा योग्या नारी।
- जा ना पाइया दुःखे मरि, अयोग्य पिये सइते नारी,
- ताहा लागि तपस्या विचारि।।”[1]
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