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- श्रील यदुनन्दन ठाकुर का पद्यानुवाद
- सखि हे ! सम्यक् प्रकारे कृष्णचन्द्र।
- क्षणे क्षणे नवीनता, प्राय जेइ मोहनता,
- प्रकाशये परम आनन्द।।
- जतो व्रजनारीगण, स्तनतटि मनोरम,
- ताहार सुखद स्थान जे।
- किम्बा कुचतटगण, कृष्णेर सुखद स्थान,
- ताहाते सुलभ हय से।।
- एइतो कारणे कहि, कोनो अनुपम दशा नहि,
- कोटि काम मोहये ताहाते।
- प्रकट करये जाहा, देखो सखि ताहा ताहा,
- किबा सुख ना बाड़ाये चिते।।
- अनन्त माधुर्य देखि, सबे मोर दुटि आँखि,
- ताते किबा देखिबो गोविन्द।
- कोटि नेत्र हय जबे, कृष्ण अंग देखि तबे,
- दुइ नेत्र दिलो विधि मन्द।।
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