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- श्रील यदुनन्दन का पद्यानुवाद
- सखि हे ! मुरारिर मुखाम्बुज सुन्दर।
- मोर मन पुनः पुनः चुम्बे निरन्तर।।
- नेत्रपथ दिया चित्त करे आस्वादन।
- निज निज भाव जीवविशेष-लक्षण।।
- सुमधुर ओष्ठाधर जाते विराजय।
- आ अरुण द्विलोचन ताते शोभामय।।
- कटाक्षादि कृपानिधि सम्यद् जाहाते।
- नेत्रद्वय सुखमय प्रकाशये ताते।।
- जतो भक्त अनुरक्त आर व्रजनारी।
- सुसौभाग्य गर्वयोग बाड़ाय जा हेरि।।
- सेइ सेइ अन्त नाइ माधुर्याब्धिगण।
- ताते मुग्धचित्ते लुब्ध नाहिक चेतन।।
- प्रेमानन्दे अनुबन्धे सकल पासरि।
- कृष्णदर्शे राधापार्श्वे निज स्फूर्ति सारि।।
- राधा प्रति कहे अति आनन्द आचरि।
- कृष्ण अंग पुण्यगन्ध उपमा ना हेरि।।85।।
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