श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
श्रीपाद भट्टगोस्वामी ने लिखा है- कवि श्रीलीलाशुक भावना की परिपक्ता के कारण इस श्लोक में साक्षात् दर्शन की तरह सामने स्फुरित श्रीकृष्ण का आगमन वर्णन कर रहे हैं। मेरे जीवित अर्थात् जीवनस्वरूप श्रीकृष्ण आगमन कर रहे हैं। कैसे जीवित? कोमल पादपल्लवों में मृदुमधुर क्वणित (बजते) नूपुरों से जिनकी गति मन्थर हो गई हैं। फिर जो ‘आत्तेकेलि’ अर्थात् केलि या विलास के साथ आ रहे हैं। इससे विविध गतियों से युक्त नाना प्रकार की नृत्यकलायें ध्वनित होती हैं। कैसे आ रहे हैं? जो मनोहर वेणुगीत है, उसी का अनुस्मरण करते। अर्थात् धीरगमन में श्रीचरणों के नूपुर इतनी मधुरता से ध्वनित हो रहे हैं कि लगता है मानो वेणुध्वनि का स्मरण कर रहे हैं। अथवा जिनका मनोहर वेणुगीत स्मरवत् आचरण कर रहा है, अर्थात् वेणुगीत व्रजगोपियों का स्मर-उद्गम या मदन-आवेश प्रकाशित कर रहा है। वंशी के स्वर पर मदन-आवेश में राधारानी के रन्धन का चित्र देखिये- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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