श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
अमृत-सरोवर के निकट रहने से ही सब उसका आस्वादन कर लेंगे, ऐसा नहीं है। तीव्र पिपासा आस्वादन का परिमापक है। महाभाव सुतीव्र पिपासामय अनुराग की चरम परिपक्व अवस्था है। श्रीकृष्णमाधुरी का आस्वादन निरन्तर सर्वाधिक करके भी इन लोगों को पिपासा की निवृत्ति नहीं होती। जितनी पिपासा, उतना आस्वादन। जितना आस्वादन, उतनी पिपासा। “तृष्णा शान्ति नहे तृष्णा बाढ़े निरन्तर।” इन लोगों की ही उक्ति हैं-
इसीलिए व्रजबालाओं का श्रीकृष्णप्रेमोवेश सबसे अधिक है और सौन्दर्य भी उन लोगों के प्रेम से ही उत्पन्न है। राधारानी साक्षात् महाभाव की प्रतिमा हैं। “प्रेमेर स्वरूप देह प्रेम विभावित। कृष्णेर प्रेयसी श्रेष्ठा जगते विदित।।”[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ चै.च.
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