श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
प्रश्न सम्भव है कि इस श्लोक में अनेक रूप धारण करने की बात है, यह क्यों? इसके उत्तर में कहा गया है कि यह बहुरूप धार नहीं, एक रूप ही अनेक रूपों में प्रकाशित है। श्रीकृष्ण विभु हैं, एक रूप से बहुरूपों में प्रकाशित होना- इसमें कोई आश्चर्य नहीं। द्वारकालीला में महिषीविवाह प्रसंग में कहा गया है-
‘यह बड़ा ही आश्चर्य है कि श्रीकृष्ण ने एकाकी एक ही विग्रह से एक ही समय में सोलह हजार घरों में पृथक् पृथक् सोलह, हजार राजकन्याओं का पाणिग्रहण किया था।’
रासनृत्य के समय नृत्यकौशल के साथ ही कृष्ण ने आलातचक्र की तरह नृत्य किया था, तभी श्रील लीलाशुक ने कहा है- ‘चापल्यसीम’। पहले नृत्य के समय गतिलाघव अर्थात् नृत्यगति की शीघ्रता के कारण श्रीकृष्ण जो चापल्य दिखा रहे हैं, उसे देखकर कहा- यही मे जीवनस्वरूप श्रीकृष्ण सभी प्रकार के चापल्य की सीमा हैं- चपलता की अवधि।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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