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- पशुपाल-नारीगण, भूषण जे मनोरम,
- हेनो माने नीलमणि जेनो।
- नायक सोसर शोभा, जाते हय चित्त – लोभा,
- मोर हिया व्याप्ते रस तेनो।।
- शीतल लोचन, ताते, सदाइ करुणा जाते,
- सेइ नेत्र व्याप्त हैलो हिया।।
- तिन श्लोक मान्य कहि, कृष्णवर्णे सुख पाइ,
- मोर प्राण एसब कहिया।।
- कृष्ण कहे ऋणी आमि, एइ आदि सुधावाणी,
- ताते गोपी ईर्ष्या पंक क्षाले।
- विलास लालसा पुनः, नदी उच्छलिते दुन,
- लोभ बाड़े कृष्णेर अन्तरे।।
- वंशीगानामृत वर्षे, कृष्णमेघ अति हर्षे,
- अति प्रेमानन्द हैलो ताय।
- एकि एकि घन बोलि, लीलाशुक कुतूहली,
- पुनः एक श्लोक उच्चारय।।71।।
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