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- अतिशय धूर्तराज, हेनो बुझि कुञ्जमाझ
- कारो संगे करये रमण।
- सुखे विलासये तथा, ए लागि ना आसे एथा
- मोरे कैछे दिबे दरशन।।
- कहिते कहिते पुनः, उन्माद बाड़िलो मन
- आइला कृष्ण मने हेनो देखे।
- अन्यांगना- भोगचिह्न, प्रति अंगे परवीण
- आघूर्ण नयन हास्यमुखे।।
- देखितेइ तार मति, सेहो कृष्णचंद्र प्रति
- अतिशय क्रोध उपजिलो।
- ताहा देखि कृष्ण जेनो, तारे छाड़ि गेला पुनः
- पाछे तापे औत्सुक्य हइलो।।
- एइ दुइ भावे मेलि, भावसन्धि करि बोलि
- अमर्ष विक्षेप अपमान।
- औत्सुक्य दर्शन इच्छा, अन्योन्य ना करे इच्छा
- शावल्येर एइ तो लक्षण।।
- अतिदैन्य सचापल, मोहोन्माद महाबल
- सन्धि शावल्येर एइ चिह्न।।39।।
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