श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
‘आकर्णयानि’ पाठान्तर का अर्थ होगा- यदि श्रीकृष्ण आते हैं, तो उनके नृत्य शील चरणों की नूपुरध्वनि मेरे कानों में प्रवेश करेगी, तभी मुझे विश्वास होगा कि वे आये हैं। आने का हेतु बताती हैं- श्रीकृष्ण करुणासागर हैं, अतएव मेरी प्रार्थना पूरी करने के अभिप्राय से दर्शन देने आये हैं। कैसे? वेणुनिनाद द्वारा आर्द्र अर्थात् नृत्य हेतु चरण- नूपुरों के वाद्य और मुरलीनिनाद से स्निग्ध। ऊपर से पदताल। वलय (कंगन) किंकिणी आदि के प्रतिनाद से परिपूर्ण अर्थात् वह प्रतिध्वनि मुरली की ध्वनि के साथ मिल रही है- इस प्रकार अपूर्व नादमाधुरी प्रकट करते हुए आ रहे हैं। फिर ‘आलोललोचनयो-र्विलोकितकेलि-धारभिर्नीराजितौ तस्यैवाग्रचरणौ यैं’- अर्थात् जिनके चरणों का अग्रभाग चञ्चल नयनों की दृष्टि रूपी क्रीड़ाधारा से नीराजित है। चञ्चल नयनों की चपल दृष्टिधारा मानो श्रीचरणों की आरति कर रही हैं। वंशीवादन के समय चरणों के नृत्य में ताल केलिधारा नीराजिताग्रचरणेः इस अंश का ऐसा अर्थ भी संभव है: व्रजदेवियों के विलोल नयनों की दृष्टिकेलिधारा द्वारा जिनके चरणों का अग्रभाग नीराजित हो रहा है। भक्तकवि ने श्लोक का भाव मधुर पद्य के रूप में प्रकट किया है-
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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