श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
हम लोग तुम्हारा वह रूप देखने के लिए उत्कण्ठित हो उठी हैं। बोलो, बताओ, अब हम क्या करें? हम लोग मुग्धा अहीरन बालायें- हमारे नेत्रों का भी क्या दोष? तुम्हारे शिखिपिच्छशोभित घनकृष्ण-कुञ्जित इन कुन्तलों की छटा पर कौन विमोहित नहीं होता? महाजन पदकर्ता ने भी गाया है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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