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- गोविन्देर प्रिय देखि, भूरिभाव अंगे माखि
- जेइ जल्प सेइ चित्रजल्प।
- असूयेर्ष्या मद गर्व, कुहकता कहे सर्व
- सोल्लुण्ठन कहेन अनल्प।।
- एइ दिव्योन्मादे राइ, क्षणेके देखये ताइ
- कृष्ण जेनो अवज्ञा वचने।
- अन्यत्र चलिया गेला, एइ मने उपजिला
- तापोत्कण्ठा हृदि प्रकाशने।।
- चतुःश्लोके कहे कथा, सदैन्य गाम्भीर्य-मता
- सचापल्य उत्कण्ठा सहिते।
- सेइ भावे लीलाशुक, श्लोक पड़े अद्भुत
- भक्त सुख जाहाके शुनिते।।27।।
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