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- प्रणय-प्रवाहमय, राधार विषये हय
- से प्रवाह रहुक हृदये।
- तोमा सबार चित्ते रहु, राधार हृदये बहु
- गोविन्देर नेत्र सरसमये।।
- पुनः विचारये मने, कैछे सेइ दुनयने
- प्रत्यह नूतन हेनो लय।
- पूर्वदिने जे देखिलो, ताहा हइते ए लखिलो
- कभु नाहि देखि तेहो लय।।
- कहिते सशंक हैला, निरखिया विचारिला
- सुललित निमिषे निमिषे।
- एखनि देखिलो जाहा, निमिष अन्तरे ताहा
- अतिशय माधुरी वरिषे।।
- अतिशय अनुरागे, सदा नव नव लागे
- गोविन्देर प्रति अंगगण।
- कृष्णकर्णामृत कथा, अमृत हैते परामृता
- भाग्यवान् करे आस्वादन।।
- पुनः देखे कृष्णमुख, मन्दहासि रसकूप
- अंतरे आनन्द अन्य भावे।
- से हासिते राधिकारे, कहे कुञ्जे जाइबारे
- देखि हृदे सुख अनुभावे।।13।।
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