श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
उन लोगों के गणों के अन्तर्भुत (गोपियों के अनुगत) मुझ- जैसे जन का वाक्य गुम्फन या वाक्यरचना समुज्जृम्भा या अत्यधिक उल्लासयुक्त है। कैसे? ‘मधुरिमकिरां’ जो माधुर्य वर्षण करते हैं, वैसे वाक्य अर्थात् रसविशेष उल्लासमयी वाणी। ‘त्वयि स्थाने’ तुम्हारे स्थान पर अर्थात् श्री वृन्दावन के निकुञ्जसमूह में जाने पर गोपियों की गति, चपलता- चतुराई से युक्त वचन- परिपाटी सभी सफलता प्राप्त करते हैं, यही समुदयार्थ है।।101।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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