श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
श्रील चैतन्यदास गोस्वामिपाद कहते हैं- कमनीयता की परिणति या पराकाष्ठा तुम्हारी यही नराकृति (में) है। यह नराकृति ही व्रजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्ण का स्वरूप है। ‘नरवपु ताहार स्वरूप’[1]।।100।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ चै. च.
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