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नयनों की ओर देखकर बोले- प्रियाजी के साथ रति जागरण किया है, इसलिए नयन अरुण हैं, अलसाये और ऊँघते से हैं, इन नेत्रों की शोभा अद्भुततर है। फिर श्रीअंग की ओर देखकर बोले- प्रियाजी के साथ संभोग विलासमय श्रीअंग की शोभा अति अद्भुततम है। ‘चित्रम् चित्रम्’ इन बातों की अत्यंत आश्चर्य के साथ बार-बार आवृत्ति की है। श्रीपाद चैतन्य दास ने श्रील विल्वमंगल ठाकुर द्वारा वर्णित[1] व्रजसुन्दरियों के स्तनतटी – साम्राज्य के संदर्भ में इस श्लोक की व्याख्या में श्रीकृष्ण के जिस सम्भोग विलासमय रूप की माधुरी प्रकाशित की है, वह सत्य ही अति अपूर्व है। सहृदय साधक के लिए अत्यंत हृदयग्राही।।89।।
- श्रील यदुनन्दन ठाकुर का पद्यानुवाद
- सखि हे ! एइ कृष्णचरणार विन्द।
- पूर्वे जा प्रार्थना कैनु, एइ जे साक्षात् पाइनु,
- कि अद्भुत परम आनन्द।।
- एइ कृष्ण-मुखपद्म, सकल आनन्द-सद्म,
- बड़ोइ अद्भुत हय आर।
- पूर्ण वाञ्छा जतो मोर, पूर्ण कैलो भाग्यभर,
- देखिलाउँ मुखपद्म सार।।
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