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- न केवल अरुन्धती, सती मन हरे निति,
- जगत्त्रय मनोहारि वेश।
- प्रथम यौवनारम्भ, कैशोर सम्पूर्ण दम्भ,
- ताहाते मोहिला सर्वदेश।।
- कैशोर वयस सार, प्रति अंगे अलंकार,
- एक अंग शोभापुञ्ज हेरि।
- जगतेर नारी जतो, के राखिबा धैर्य कतो,
- श्रुति मात्र हइलो बाउली।।
- ताते काम मदगण, व्याप्त आछे द्विनयन,
- ताहाते चञ्चल तार गति।
- कोटि काम मोह करे, हेनो हास्य जेहो धरे,
- सेइ, हबे अमृतेर रति।।
- प्रतिक्षणे मतिलोभा, हेनो हास्य जेहो धरे,
- जार प्रति तनुते विराज।
- शुक्ना वंशीर मुख, चुम्बि जेहो पाय सुख,
- प्रणये पिबये एइ काज।।
- कहिते कहिते तार, प्रत्यंग माधुरीसार,
- स्फूर्ति हैला आसि निजमने।
- आश्चर्य कहये वाणी, कृष्णकर्ण – रसायनी,
- लीलाशुक श्लोक उच्चारणे।।88।।
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