श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
“आतन्वानमनन्यजन्मनयनश्लाघ्या- मनर्घ्या दशाम्”- इस अंश की व्याख्या में बोले, अतएव श्रीकृष्ण ने कोई एक अनिर्वचनीय अनुपम दशा प्रकट की है, जिससे वे कोटि मन्मथों का मन भी विमोहित करते हैं। माधुर्य की अनन्तता के कारण दो नेत्रों से इसका अनुभव सम्भव नहीं, इसलिए श्रीकृष्ण दर्शन के इच्छुक कोटि नयनों के लिए प्रार्थना किया करते हैं। महाप्रभु का प्रलाप देखिये-
पुरुष देह श्रीकृष्णमाधुर्य आस्वादन के लिए उपयोगी नहीं है, यह जानकर श्रीलीलाशुक ने रमणीदेह लिए प्रार्थना की। फिर यह सोचकर कि सामान्य स्त्रीदेह भी अनुपयोगी है दैन्य के साथ बोले- व्रजसुन्दरी अतिरिक्त अन्यान्य स्त्री के रूप में जन्म लेने से भी क्या लाभ? अप्राकृत नवीन मदन श्रीकृष्ण के माधुर्य-आस्वादन का कारण है महाभाव। “प्रौढ़ निर्मल भाव प्रेम सर्वोत्तम। कृष्णेर माधुरी आस्वादने कारण।।”[2] यह महाभाव एकमात्र व्रजवधुओं में ही विद्यमान है। अन्यान्य के नियमों से श्रीकृष्णदर्शन की श्लाघा (प्रशंसा) भी दूर; अनुभव की तो बात ही नहीं। अर्थात जब श्लाघा की ही सामर्थ्य नहीं होती, तो अनुभव की सामर्थ्य कैसे मिलेगी? श्रीकृष्ण का सौन्दर्य-माधुर्य केवल व्रजसुन्दरियों का ही अनुभवगम्य है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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