|
|
- श्रील यदुनन्दन ठाकुर का पद्यानुवाद
- सखि हे ! सेइ कृष्ण आइसे विद्यमान।
- आमार नयन बन्धु, जा बिनु ना अन्य बन्धु,
- तोंहो आइलो सुमोहन-ठाम।।
- आनन्दे प्रपुल्ल अति सुकेलि कटाक्ष तति,
- तार शोभा जार विलक्षण।।
- ओइ शोभा देखिबारे, मोर दिठि आशा धरे,
- जे लागि तापित अनुक्षण।।
- तैछे वंशीगानामृत, अमृत हैते परामृत,
- सिञ्चे मोर एइ कर्णद्वये।
- जे ध्वनि श्रवण लागि, सदा कर्ण अनुरागी,
- देखो तार लालसा पूरये।।
- एतो कहि पुनः देहे, पूरब उत्कण्ठा जाहे,
- दरशे विभ्रम लागे आँखि।
- ताहार साफल्य हैलो, मने एइ अनुमिलो,
- ताते श्लोक पड़े हर्ष माखि।।79।।
|
|