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रास में व्रजदेवियों के साथ श्रीकृष्ण का सरस लीलाचातुर्य देखकर बोले- ‘चातुर्यसीम’। नृत्य-गीत आदि में चातुर्य या पारदर्शिता का परिचय महाजनों के पदों में भी मिलता है-
- “नाचत नटवर कान।
- रसवती पुन पुन हेरइ बयान।।
- बाजत कत कत यन्त्र रसाल।
- गाओत सहचरि देओत ताल।।
- चौदिगे बेढ़ल नटिनी समाज।
- माझे शोभत तहिं नटवर राज।।
- नट-नटिनीगण भेलो एकसंग।
- चलत चित्रगति अंग विभंग।।
- करे कर जोड़ि भोरि नाचे बाला।
- मदन गाँथल जनु चाँदकि माला।।
- पदतल ताल धरणि पर धारि।
- नाचत रंगिणी संगे मुरारि।।
- हेरि ललितासखी लेयलि डम्फ।
- विकट ताल तब करलि आरम्भ।।
- हासि कमलमुखी कहे शुनो कान।
- इह पर पदगति करह सुठान।।
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