श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
अर्थात् दावाग्नि से जलते व्रजवासी नींद से उठकर चारों ओर भयावह दावानल देखकर उन्हीं नराकृति परब्रह्म श्रीकृष्ण के ही शरणापन्न हुए। ‘हे सर्वशक्तिमान् श्रीकृष्ण ! इस सुदुस्तर कालाग्नि से अपने आत्मीयों और बान्धवों की रक्षा करो। हमलोग तुम्हारे अभय चरणों को त्यागने में असमर्थ हैं।’ श्रीकृष्ण सभी प्रकार की विपदा से उनकी रक्षा करने में समर्थ हैं- इस विश्वास से स्तवकित (प्रफुल्लित) है व्रजवासियों का चित्त। बाह्यदशा में श्रीलीलाशुक मथुरा के निकट पहुँचे, तो उन्हें सर्वत्र श्रीकृष्ण स्फूर्ति होने लगी। व्रजधाम श्रीकृष्ण के उद्दीपन का ही स्थान है। प्रेमिकों को यहाँ स्वाभाविक रूप से ही श्रीकृष्णस्फूर्ति होती है। प्रेमाविष्ट दशा में श्रीमन्महाप्रभु को वन-दर्शन से वृन्दावन, पर्वत-दर्शन से गोवर्धन और नदी देखने से ही यमुना की स्फूर्ति होती।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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