सभी पृष्ठ | पिछला पृष्ठ (चैतन्य चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी पृ. 72) | अगला पृष्ठ (जयावती) |
- ज जन सरन भजे वनवारी -सूरदास
- जंगारि
- जंघाबंधु
- जंघाबन्धु
- जंघारि
- जंत्र-मंत्र कह जानै मेरौ -सूरदास
- जंत्र मंत्र कह जानै मेरौ -सूरदास
- जंधाबन्धु
- जंबू द्वीप
- जंबूद्वीप
- जखिन गाँव
- जखिन गांव
- जग-सुख पाइ मुक्ति लहै सोइ2 -सूरदास
- जग-सुख पाइ मुक्ति लहै सोइ3 -सूरदास
- जग-सुख पाइ मुक्ति लहै सोइ -सूरदास
- जग उठे भाग्य अग-जग के -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जग जीवन को फल जानि परयो -पद्माकर
- जग में जीवणा थोड़ा -मीराँबाई
- जग में मरकर, तुममें जीवन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जग मैं जीवत ही कौ नातौ -सूरदास
- जग रही थी रात भर सुधिहीन मैं -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जगत्कृत
- जगत्तीर्थयात्राकर
- जगद्गुरु श्रीकृष्ण -जी. वी. केतकर
- जगद्गौरी
- जगद्वन्धु
- जगन्नाथ
- जगन्नाथ पुरी
- जगन्नाथ मंदिर पुरी
- जगन्नाथ मिश्र
- जगन्नाथ रथयात्रा
- जगी, नेत्र खोले-देखा -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जगी तुरत अपनी अयोग्यता -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जगपति नाम सुन्यौ हरि, तेरौ -सूरदास
- जघन
- जज्ञ प्रभु प्रगट दरसन दिखायौ -सूरदास
- जटाधर
- जटायु
- जटालिका
- जटासुर
- जटासुर (असुर)
- जटासुर (बहुविकल्पी)
- जटासुर द्वारा द्रौपदी, युधिष्ठिर, नकुल एवं सहदेव का हरण
- जटिला
- जटिला (गौतम पुत्री)
- जटिला (बहुविकल्पी)
- जटी
- जठर
- जठर (अग्नि)
- जठर (बहुविकल्पी)
- जठर देश
- जठरानल
- जड-चेतन सब में देखूँ नित -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जतीपुरा गोवर्धन
- जतुगृह
- जदपि मैं बहुतै जतन करे -सूरदास
- जदुपति कौ संदेस सखी री कैसै कैहब कहौ -सूरदास
- जदुपति जल क्रीड़त जुवति संग -सूरदास
- जदुपति जानि उद्धव रीति -सूरदास
- जदुपति दीख सुदामा आवत -सूरदास
- जदुपति लख्यौ तिहि मुसुकात -सूरदास
- जदुपति सखा ऊधौ जानि -सूरदास
- जदुबंसी कुल उदित कियौ -सूरदास
- जद्दपि मन समुझावत लोग -सूरदास
- जद्यपि नैन भरत ढरि जात -सूरदास
- जद्यपि मन समुझावत लोग -सूरदास
- जद्यपि राधिका हरि संग -सूरदास
- जन की और पति राखै -सूरदास
- जन के उपजत दुख किन काटत
- जन के उपजत दुख किन काटत -सूरदास
- जन कौ हौ आधीन सदाई -सूरदास
- जन कौ हौं आघीन सदाई -सूरदास
- जन यह कैसे कहै गुसाई -सूरदास
- जनक
- जनक (पिता)
- जनक (बहुविकल्पी)
- जनक का दृष्टांत सुनाकर अर्जुन द्वारा युधिष्ठिर को संन्यास ग्रहण से रोकना
- जनक की उक्ति तथा राजा नहुष के प्रश्नों के उत्तर मे बोध्यगीता
- जनकपुर
- जनकवंशी वसुमान को मुनि का धर्मविषयक उपदेश
- जनकसुता, तू समुझि चित्त मैं -सूरदास
- जनदेव
- जननि जगावति उठौ कन्हाई -सूरदास
- जननि मथति दधि, दुहत कन्हाई -सूरदास
- जननि मथति दधि -सूरदास
- जननी
- जननी, हौं अनुचर रघुपति कौ -सूरदास
- जननी, हौं रघुनाथ पठायौ -सूरदास
- जननी अतिहिं भई रिसहाई -सूरदास
- जननी कहति कहा भयौ प्यारी -सूरदास
- जननी चापति भुजा स्याम की -सूरदास
- जननी देखि छबि, बलि जाति -सूरदास
- जननी पुनि पुनि ग्रीव निहारै -सूरदास
- जननी बलि जाइ हालरु -सूरदास
- जननी बलि जाइ हालरू हालरौ गोपाल -सूरदास
- जनम-जनम-जब-जब, -सूरदास
- जनम-जनम-जब-जब -सूरदास
- जनम गँवायौ ऊआबाई -सूरदास
- जनम तौ ऐसेहिं बीति गयौ -सूरदास
- जनम तौ बादिहि गयौ सिराइ -सूरदास
- जनम सब बीत्यौ अघ कें काम -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जनम साहिवी करत गयौ -सूरदास
- जनम सिरानौ अटकैं-अटकैं -सूरदास
- जनम सिरानौ ऐसैं-ऐसैं -सूरदास
- जनम सिरानौई सौ लाग्यौ -सूरदास
- जनमेजय
- जनमेजय (कुरु पुत्र)
- जनमेजय (चंद्रवंशी राजा)
- जनमेजय (दुर्मुख पुत्र)
- जनमेजय (नाग)
- जनमेजय (नीपवंशी राजा)
- जनमेजय (पुरु पुत्र)
- जनमेजय (बहुविकल्पी)
- जनमेजय का इन्द्रोत मुनि की शरण में जाना
- जनमेजय का राज्यभिषेक
- जनमेजय का राज्यभिषेक और विवाह
- जनमेजय का वैशम्पायन से कर्णवध वृत्तान्त कहने का अनुरोध
- जनमेजय की प्रतिज्ञा
- जनमेजय के यज्ञ में व्यास का आगमन
- जनमेजय के सर्पयज्ञ का उपक्रम
- जनमेजय के सर्पसत्र के विषय में रुरु की जिज्ञासा
- जनमेजय को सरमा का शाप
- जनमेजय जब पायौ राज -सूरदास
- जनमेजय द्वारा सोमश्रवा का पुरोहित पद
- जनलोक
- जनस्थान
- जनाबाई
- जनार्दन
- जनार्दन, तीर्थस्थल
- जनि कोउ काहू कें बस होहि -सूरदास
- जनि कोउ काहू कै बस होहि -सूरदास
- जनि कोऊ बस परौ पराऐ -सूरदास
- जनि चालहि अलि बात पराई -सूरदास
- जनि बोलै पपिहा हो डाढ़ी -सूरदास
- जनि बोलै पपिहा हो डाढी़ -सूरदास
- जनि बोलै पपिहा हौं डाढ़ी -सूरदास
- जनि हठ करहू सारँग नैनी -सूरदास
- जनेश
- जनै पूजित
- जन्तु
- जन्म-मरण न दुःख सुख -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जन्म अजन्मा, अविनाशी का -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जन्म कर्म च मे दिव्यम (जयदयाल)
- जन्म कर्म च मे दिव्यम (जयदयाल गोयन्दका)
- जन्म कर्म च मे दिव्यम -जयदयाल गोयन्दका
- जन्माष्टमी
- जन्माष्टमी -बालकृष्ण कालेलकर
- जन्माष्टमी अर्थात घोर अन्धकार में दिव्य प्रकाश ! -लक्ष्मणनारायण गर्दे
- जन्माष्टमी का सन्देश -टी. एल. वास्वानी
- जन्मोच्छव राधिका कुँवरि -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जन्माष्टमी का उत्सव -दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर
- जप और ध्यान की महिमा और उसका फल
- जपने योग्य मंत्र और सबेरे-शाम कीर्तन करने योग्य देवता
- जपयज्ञ के विषय में युधिष्ठिर का प्रश्न
- जपा
- जपापुष्पहस्त
- जब-जब मुरली कै मुख लागत -सूरदास
- जब-जब मुरली कैं मुख लागत -सूरदास
- जब ऊधौ यह बात कही -सूरदास
- जब कर तै गिरि धरयौ उतारि -सूरदास
- जब कर तैं गिरि धरयौ उतारि -सूरदास
- जब कर बेनु सची बलवीर -सूरदास
- जब के तुम विछुरे प्रभु मोरे कबहु न पायो चैन -मीराँबाई
- जब गहि राजसभा मैं आनी -सूरदास
- जब जदु-कुल-पति कंसहि मारयौ -सूरदास
- जब जब तेरी सुरति करत -सूरदास
- जब जब दीननि कठिन परी -सूरदास
- जब जब मुरली कान्ह बजावत -सूरदास
- जब जब हरि कर बेनु गहत -सूरदास
- जब जान्यौ ब्रज-देव मुरारी -सूरदास
- जब जान्यौ ये न्हातिं सबै -सूरदास
- जब तक जग में रहते मुझको -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जब तुम कहती हो- हे छलिया -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जब ते हरि मधुपुरी सिधाये -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जब तै निरखे चारु कपोल -सूरदास
- जब तै नैन गए मोहिं त्यागि -सूरदास
- जब तै प्रीति स्याम सौ कीन्ही -सूरदास
- जब तै सुंदर बदन निहारयौ -सूरदास
- जब तै स्रवन सुन्यौ तेरौ नाम -सूरदास
- जब तै हरि अधिकार दियौ -सूरदास
- जब तैं आँगन खेलत देख्यौ -सूरदास
- जब तैं नैन गए मोहिं त्यागि -सूरदास
- जब तैं प्रीति स्याम सौं कीन्ही -सूरदास
- जब तैं बंसी स्त्रवन परी -सूरदास
- जब तैं बंसी स्रवन परी -सूरदास
- जब तैं बिछुरे कुंज बिहारी -सूरदास
- जब तैं बिछुरे कुंजबिहारी -सूरदास
- जब तैं रसना राम कह्यौ -सूरदास
- जब तैं स्रवन सुन्यौ तेरौ नाम -सूरदास
- जब तैं हरि अधिकार दियौ -सूरदास
- जब दधि-रिपु हरि हाथ लियौ -सूरदास
- जब दधि बेचन जाहिं -सूरदास
- जब दधि बेचन जाहिं 1 -सूरदास
- जब दधि बेचन जाहिं 2 -सूरदास
- जब दधि बेचन जाहिं 3 -सूरदास
- जब दधि मथनी टेक अरै -सूरदास
- जब दूती यह बचन कह्यौ -सूरदास
- जब प्यारी मन ध्यान धरयौ है -सूरदास
- जब प्यारी मन ध्यान ध्ररयौ है -सूरदास
- जब प्यारी यह बात सुनाई -सूरदास
- जब मै इहाँ तै जु गयी -सूरदास
- जब मोहन कर गही मथानी -सूरदास
- जब लगि ज्ञान हृदै नहिं आवै -सूरदास
- जब सब गाइ भई इक ठाई -सूरदास
- जब सब गाइ भई इक ठाईं -सूरदास
- जब सिर चरन धरिहौ जाइ -सूरदास
- जब सिर चरन धरिहौं जाइ -सूरदास
- जब सुनिहौ करतूति हमारी -सूरदास
- जब से छूटा था राधे! -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जब से मोहिं नंदनंदन -मीराँबाई
- जब हरि जू भए अंतघनि -सूरदास
- जब हरि जू भए अंतर्धान -सूरदास
- जब हरि मुरली अधर घरत -सूरदास
- जब हरि मुरली अधर धरत -सूरदास
- जब हरि मुरली अधर धरी -सूरदास
- जब हरि मुरली नाद प्रकास्यौ -सूरदास
- जब हरि रथ चढ़ि चले मधुपुरी -सूरदास
- जबसे सुना सुधामय सुन्दर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जबहि चले ऊधौ मधुबन तै -सूरदास
- जबहि बन मुरलो स्त्रकवन परी -सूरदास
- जबहि बेनुधुनि साँमरै बृंदावन लाई -सूरदास
- जबहिं कह्यौ ये स्याम नहीं -सूरदास
- जबहिं कान्ह यह बात सुनाई -सूरदास
- जबहिं कान्ह यह बात सुनाई 1 -सूरदास
- जबहिं बन मुरली स्रवन परी -सूरदास
- जबहिं स्याम तन अति बिस्तारयौ -सूरदास
- जबही यह कहौंगौ याहि -सूरदास
- जबही रथ अक्रूर चढ़े -सूरदास
- जबही स्याम कही यह बानी -सूरदास
- जबहीं मुरली अधर लगावत -सूरदास
- जबहीं रथ अक्रूर चढ़े -सूरदास
- जमदग्नि
- जमदग्नि ऋषि
- जमदग्नि का सूर्य पर कुपित होना
- जमदग्नि की उत्पत्ति का वर्णन
- जमदग्नि मुनि की हत्या
- जमुन तट आइ अक्रूर न्हाए -सूरदास
- जमुना-जल कोउ भरन न पावै -सूरदास
- जमुना-तट देखे नंद-नंदन -सूरदास
- जमुना आइ गई बलदेव -सूरदास
- जमुना कै तट खेलति हरि संग -सूरदास
- जमुना चली राधिका गोरी -सूरदास
- जमुना जल क्रीड़त नंद नंदन -सूरदास
- जमुना जलहि गई जे नारी -सूरदास
- जमुना जलहिं गई जे नारी -सूरदास
- जमुना तै हौ बहुत रिझायौ -सूरदास
- जमुना तै हौं बहुत रिझायौ -सूरदास
- जमुना पुलिनहिं रच्यौ -सूरदास
- जमुना पुलिनहिं रच्यौ 2 -सूरदास
- जमुना में कूद परयौ कान्हा -सूरदास
- जमुनाजल बिहरति ब्रजनारी -सूरदास
- जमुनापुलिन रच्यौ हिंडोर -सूरदास
- जमुपुर द्वारे, लगे तिनमें के वारे -पद्माकर
- जम्बुक
- जम्बू द्वीप
- जम्बूक
- जम्बूद्वीप
- जम्बूमार्ग
- जम्भ
- जम्भ (बहुविकल्पी)
- जम्भ राक्षस
- जम्भक
- जय
- जय-जय धुनि अमरनि नभ कीन्हौ -सूरदास
- जय (अनुचर)
- जय (उपाख्यान)
- जय (कृष्ण पुत्र)
- जय (धृतराष्ट्र पुत्र)
- जय (नाग)
- जय (बहुविकल्पी)
- जय (युधिष्ठिर)
- जय (राजा)
- जय (सूर्य)
- जय अरु विजय पारषद दोइ -सूरदास
- जय अरु विजय पारषद होइ -सूरदास
- जय अरू विजय पारषद होइ -सूरदास
- जय जय, जय जय, माघघ-बेनी -सूरदास
- जय जय, जय जय, माधध-बेनी -सूरदास
- जय जय जय मथुरा सुखकारी -सूरदास
- जय जय जय राधा अभिराम -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जय जय ब्रजराज-तनय ब्रजबन-बिहारी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जय जय राधा, रासेश्वरि जय -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जय जय श्री सूरजा कलिन्द नन्दिनी -छीतस्वामी
- जय जय हरि-हृदया वृषभानु-सुकुमारी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जय नँद-नंदन प्रेम-बिवर्धन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जय नँद-नन्दन, जय गोपाल -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जय परमेश्वरि, जयति परम -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जय राधे! जय राधे! जय राधे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जय राधे, जय जय राधे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जय राधे जय श्री राधे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जय वसुदेव-देवकी-नन्दन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जय वसुदेव-देवकीनन्दन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जय श्रीकृष्ण! -झाबरमल्ल शर्मा
- जयंत
- जयंती
- जयंती (इंद्र की पुत्री)
- जयंती (बहुविकल्पी)
- जयंती (मातृका देवी)
- जयंतीपुरी
- जयति जय गोप्रेमी गोपाल -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जयति जय जयति -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जयति जय श्रीबृषभानु-दुलारी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जयति देव, जयति देव -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जयति नँदलाल जय जयति गोपाल -सूरदास
- जयति राधिका जीवन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- जयत्सेन
- जयत्सेन (जरासंध पुत्र)
- जयत्सेन (धृतराष्ट्र पुत्र)
- जयत्सेन (नकुल)
- जयत्सेन (बहुविकल्पी)
- जयत्सेना
- जयदेव
- जयदेव की जगन्नाथ यात्रा
- जयदेव द्वारा गीतगोविन्द की रचना
- जयद्रथ
- जयद्रथ (बहुविकल्पी)
- जयद्रथ (राजा)
- जयद्रथ और द्रौपदी का संवाद
- जयद्रथ का द्रौपदी पर मोहित होना
- जयद्रथ का पांडवों के साथ युद्ध और व्यूहद्वार को रोक रखना
- जयद्रथ का पांडवों को चक्रव्यूह में प्रवेश करने से रोकना
- जयद्रथ की रक्षा हेतु दुर्योधन का अर्जुन के समक्ष आना
- जयद्रथ द्वारा द्रौपदी का अपहरण
- जयद्रथ वध
- जयद्रथ वध हेतु श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को आश्वासन
- जयद्वल
- जयधर
- जयन्त
- जयन्त (आदित्य)
- जयन्त (इन्द्र पुत्र)
- जयन्त (पाण्डव पक्ष योद्धा)
- जयन्त (बहुविकल्पी)
- जयन्त (वसु)
- जयन्ती
- जयन्तीपुरी
- जयप्रिया
- जयमंगल
- जयमाला
- जयरात
- जयसंहिता
- जयसेन
- जया
- जयानीक
- जयानीक (द्रुपद पुत्र)
- जयानीक (बहुविकल्पी)