जब ऊधौ यह बात कही।
तब जदुपति अति ही सुख पायौ, मानी प्रगट सही।।
श्री मुख कह्यौ जाहु तुम ब्रज कौ, मिलहु जाइ ब्रज लोग।
मो बिन, बिरह भरी ब्रजबाला, जाइ सुनावहु जोग।।
प्रेम मिटाइ ज्ञान परबोधहु, तुम हौ पूरन ज्ञानी।
‘सूर’ उपँगसुत मन हरषाने, यह महिमा इन जानी।। 3425।।