जब तैं बंसी स्रवन परी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग



जब तैं बंसी स्रवन परी।
तबहीं तैं मन और भयौ सखि, मो तन सुधि बिसरी।
हौं आपनैं अभिमान, रूप, जोबन कैं गर्व भरौ।
नैंकु न कह्यौ कियौ सुनि सजनी, बादिहिं आइ ढरी।
बिनु देखैं अब स्याम मनोहर, जुग भरि जात धरी।
सूरदास सुनि आरज-पथ तैं, कछु न चाड़ सरी।।651।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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