जबहिं स्याम तन अति बिस्तारयौ।
पटपटात टूटत अंग जान्यौ, सरन-सरन सु पुकारयौ।
यह बानी सुनतहिं करुनामय, तुरत गए सकुचाइ।
यहै बचन सुनि द्रपद-सुता-मुख, दीन्हौ बसन बढ़ाइ।
यहै बचन गजराज सुनायौ, गरुड़ छाँड़ि तहँ धाए।
यहै बचन सुनि लाखा गृह मैं पांडव जरत बचाए।
यह बानी सहि जात न प्रभु सौं, ऐसे परम कृपाल।
सूरदास प्रभु अंग सकोरयौ, ब्याकुल देख्यौ ब्याल।।556।।