जग रही थी रात भर सुधिहीन मैं -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

Prev.png
राग गुनकली - ताल रूपक


जग रही थी रात भर सुधिहीन मैं।
थी सुखी प्रिय के स्मरण में लीन मैं॥
नित्य ही जगते निशा यों बीतती।
श्यामकी स्मृति-खान तदपि न रीतती॥
आज प्रातः सहज झपकी आ गयी।
वह मुझे मधुपुरीमें पहुँचा गयी॥
देखकर मैं दशा विचलित हो गयी।
उसी क्षण मन-शान्ति मेरी खो गयी॥
वाटिका में घूमते वे श्याम थे।
दुखी व्याकुल हो रहे अविराम थे॥
नेत्र थे आँसू-सलिल बरसा रहे।
विकलताको और भी सरसा रहे॥
’हा प्रिये! हा राधिके! हृदयेश्वरी!
हा सकल सुखसाधिके! प्राणेश्वरी॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः