जननी कहति कहा भयौ प्यारी।
अबहीं खरिक गई तू नीकैं, आवत हीं भई कौन बिथा री।।
एक बिटिनियाँ संग मेरे ही, कारैं खाई ताहि तहाँ री।
मो देखत वह परी धरनि गिरि, मैं डरपी अपने जिय भारी।।
स्याम बरन इक ढोटा आयौ, यह नहिं जानति रहत कहाँ री।
कहत सुन्यौ नंद कौ यह बारौ, कछु पढ़ि कै तुरतहिं उहिं झारी।।
मेरौ मन अति भरि गयौ त्रास तै, अब नीकौ मोहिं लागत ना री।
सूरदास अति चतुर राधिका, यह कहि समुझाई महतारी।।697।।