जे जन सरन भजे वनवारी -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग रामकली



            
जे जन सरन भजे वनवारी।
ते ते राखि लिए जग-जीवन, जहँ जहँ बिपत परी तहँ टारी।
संकट तैं प्रह्लाद उधारयौ, हिरनाकसिप-उदर नख फारी।
अंबर हरत द्रुपद-तनया की दुष्‍ट सभा मघि लाज सम्‍हारी।
राख्‍यौ गोकुल बहुत बिधन तैं, कर-नख पर गोवर्धन धारी।
सूरदास प्रभु सब सुख-सागर, दीनादाथ, मुकुन्‍द, मुरारी।।22।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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