कृष्णांक
जगद्गुरु श्रीकृष्ण
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् । ‘वसुदेव-सुवन, कंस और चाणूर का मर्दन करने वाले, माता देवकी को परम आनन्द प्रदान करने वाले जगद्गुरु श्रीकृष्ण की मैं वंदना करता हूँ’। संस्कृत में यह एक सुन्दर श्लोक है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण के विशेषण चुन-चुनकर एक खास क्रम से रखे गये हैं, यही इसकी सुन्दरता है। श्रीकृष्ण प्रसिद्ध धर्मनिष्ठ और उदारचरित श्रीवसुदेव के पुत्र थे। तात्पर्य यह है कि उनका जन्म उच्च कुल में हुआ था, परन्तु उनकी महानता केवल इसी बात को लेकर नहीं थी, उन्होंने कुमारावस्था से ही धर्म स्थापन का कार्य प्रारम्भ कर दिया था। यह बात दूसरे विशेषण ‘कंसचाणूरमर्दनम्’ से व्यक्त होती है, उन्होंने अपने कर्मों से माता देवकी को आह्लादित किया, जो दुष्टों द्वारा सतायी हुई मानव-जाति का एक उदाहरण थीं। इस प्रकार श्रीकृष्ण सबके लिये वन्दनीय एवं श्रद्धा तथा कृतज्ञता के पात्र बन गये। सबसे अधिक गौरवपूर्ण विशेषण का प्रयोग अन्तिम चरण में हुआ है, क्योंकि उनकी वन्दनीयता की अपेक्षा उनके जगद्गुरुत्व का महत्व अधिक है। उनका यह जगद्गुरुत्व उनकी वन्दनीयता से अधिक चिरस्थायी होगा। उनकी वन्दनीयता का प्रभाव तो थोड़े ही पुरुषों पर पड़ सकता है, परन्तु उनके जगद्गुरुत्व को सारा संसार स्वीकार करेगा । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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