जब मोहन कर गही मथानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री



जब मोहन कर गही मथानी।
परसत कर दधि, माट, नेति, चित उदधि, सैल, बासुकि भय मानी।
कबहुँक तीनि पैन भुव मापत, कबहुँक देहरि उलँधि न जानी।
कबहुँक सुर मुनि ध्यान न पावत, कबहुँ खिलावति नंद की रानी।
कबहुँक अमर-खीर नहिं भावत, कबहुँक दधि-माखन रुचि मानी।
सूरदास प्रभु की यह लीला, परति न महिमा सेष बखानी।।144।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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