जब सुनिहौ करतूति हमारी।
तब मन-मन तुमहि पछितैहो, बृथा दई हम याकौं गारी।।
तुम तप कियौ सुन्यौ मैं सोऊ, रिस पावहुगी और कहा री।
मो समान तप तुम नहिं कीन्हौ, सुनहु करौ जनि सोर बृथा री।।
मैं कह कहौं सुनोगी तुमहीं, जगत-विदित यह बात हमारी।
सूर स्याम आपुन ही कहियै सुनत कहा मुसुकात मुरारी।।1332।।