जगद्वन्धु (जन्म- 1871 ई., मुर्शिदाबाद; मृत्यु- 17 सितम्बर, 1921) बंगाल के प्रसिद्ध संत थे। इन्होंने हरि नाम संकीर्तन का बहुत प्रचार किया। जगद्वन्धु ने जीवनभर भक्तिमार्ग का अनुसरण किया था।
- जगद्वन्धु जी का जन्म सन 1871 ई. में मुर्शिदाबाद के डाहापाड़ा नामक गांव के एक ब्राह्मण कुल में हुआ था।
- 16-17 वर्ष की उम्र में ही इनमें भगवद्भक्ति, वैराग्य, दयाभाव का इतना विकास हो गया कि लोग इनकी ओर आकर्षित हुए बिना नहीं रह सके।
- सैकड़ों-हज़ारों की संख्या में लोग इनके कीर्तन में शामिल होने लगे और इनके अमूल्य उपदेशों से लाभ उठाने लगे। ये भी घूम-घूम कर बंगाल भर में हरि-नाम-संकीर्तन का प्रचार करते थे।
- कहते हैं कि जगद्वन्धु के शरीर में एक प्रकार का दिव्य तेज था, जिसे सब लोग सहन नहीं कर सकते थे। इसी से ये सर्वदा अपना शरीर ढका रखते थे और यह आदेश कर रखा था कि कोई कभी छिपकर भी न देखे। दो-एक आदमियों ने जब इस आज्ञा का उल्लंघन किया, तब इनके दर्शन मात्र से ही वे बेहोश हो गये।
- जब इनका शरीर बड़ा रुग्ण हो गया, तब भी उनका तेज ज्यों-का-त्यों था और निरन्तर हरि-नाम-संकीर्तन इनके चारों ओर होता रहता था।
- इस तरह जीवनभर भक्तिमार्ग का स्वयं अनुसरण कर और सर्वसाधारण में उसका प्रचार कर जगद्वन्धु ने अपनी कुटी श्रीअंगन में 17 सितम्बर, सन 1921 को महाप्रस्थान किया। इसके 9 दिन बाद उसी स्थान में इन्हें समाधि दी गयी।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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