जय जय जय मथुरा सुखकारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


जय जय जय मथुरा सुखकारी।
चक्र सुदरसन ऊपर राजति, केवस जू की प्यारी।।
हाटक कोट कँगूरा राजत, हीरा रतन जरे।
मनिमय भवन उतुंग सुहाए, नवधा भक्ति भरे।।
घर घर मंगल महा महोच्छ्ब, हरिरस माते लोग।
मधु मेवा पकवान मिठाई, खटरस व्यंजन भोग।।
दही दूध के ढेरनि जित तित, सुरभी सबै सुदेस।
अष्ट महासिधि बीथिनि बीथिनि, सुमन गुहे सुर केस।।
परम धाम बैकुंठ तै आमर, श्री बाराह बखानी।
भक्ति मुक्ति के बावन बाजै, क्रीडत सारँमपानी।।
तीरथ सकल मधुपुरी सेवत, सुर नर मुनि जन आवै।
सदा प्रीति हित कान्ह बिराजै, नारदादि गुन गावै।।
अखिल भुवन की सोभा मथुरा, महिमा कही न जाइ।
धनि धनि मथुरा, पुरी सिरोमनि, निज मुख करी बड़ाइ।।
अगतिन की गति श्री मथुरा, हरिदरसन की रजधानी।
मथुरा छाँड़ि अनत रति करिऐ, यातै और न हानी।।
मथुरा निकट कबहुँ नहिं देखै, ते मतिमंद अभागे।
जननी बोझ बृथा कत मारी, जम के कागर दागे।।
निमिष एक मथुरा कौ बासी, जननी जठर न आवै।
जे बड़भागी रहै निरंतर, तिनकी कौन चलावै।।
मथुरा सरन सदा मोहि राखौ, बिनती करौ सो दीजै।
'सूरदास' द्वारै ह्वै गावै, कृष्न चरन रति कीजै।।3097।।

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