जन कौ हौं आघीन सदाई -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग भोपाला


 
जन कौ हौं आधीन सदाई।
दुरवास बैकुंठ गए जब, तब यह कथा सुनाई।
विदित बिरद ब्रह्मन्य देव , तुम करुनामय सुखदाई।
जारत है मोहिं चक्र सुदरसन, हा प्रभु लेहु बचाई।
जिन तन-धन मोहिं प्रान समरपे, सील, सुभाव, बढ़ाई।
ताकौ बिषम बिषाद अहो मुनि मोपै सह्मौ न जाई।
उलटि जाहु नृप-चरन-सरन मुनि कहै राखिहै भाई।
सूरजदास दास की महिमा श्रीपति श्रीमुख गाई।।7।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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