जन कौ हौं आधीन सदाई।
दुरवास बैकुंठ गए जब, तब यह कथा सुनाई।
विदित बिरद ब्रह्मन्य देव , तुम करुनामय सुखदाई।
जारत है मोहिं चक्र सुदरसन, हा प्रभु लेहु बचाई।
जिन तन-धन मोहिं प्रान समरपे, सील, सुभाव, बढ़ाई।
ताकौ बिषम बिषाद अहो मुनि मोपै सह्मौ न जाई।
उलटि जाहु नृप-चरन-सरन मुनि कहै राखिहै भाई।
सूरजदास दास की महिमा श्रीपति श्रीमुख गाई।।7।।