जन की और पति राखै?
जाति पाँति-कुल-कानि न मानत, बेद-पुराननि साखै।
जिहिं कुल राज द्वारिका कोन्हौ, सो कुल साप तै नास्यौ।
सोइ मुनि अंबरीष कै कारन तीनि भुवन भ्रमि त्रास्यौ।
जाकौ चरनोदक सिव सिर धरि, तीनि लोक हितकारी।
सोइ प्रभु पांडु-सुतनि के कारन निज कर चरन पखारी।
बारह बरस बसुदेव-देवकिहिं कंस महा दुख दीन्हौ।
तिन प्रभु प्रहलादहिं सुमिरत हीं नरहरि-रूप जु कीन्हौ।
जग जानत जदुनाथ, जिते जन निज-भुज-स्त्रम सुख पायौ।
ऐसौ को जु न सरन गहे तें कहत सूर उतरायौ।।15।।