जमुना-जल कोउ भरन न पावै।
आपुन बैठ्यौ कदम-डार चढ़ि, गारी दै दै सबनि बुलावै।।
काहू की गगरी गहि फोरै, काहूँ सिर तैं नीर ढरावै।
काहू सौं करि प्रीति मिलत है, नैन-सैन दै चितहिं चुरावै।।
बरबस ही अंकवारि भरत धरि, काहू सौं अपनौ मन लावै।
सूर स्याम अति करत अचगरी, कैसैहुँ काहू हाथ न आवै।।1433।।