जगी, नेत्र खोले-देखा -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग ईमन - तीन ताल


जगी, नेत्र खोले-देखा, प्रियतमका सुन्दर बदन-सरोज।
जिनके सौन्दर्यांश कोटिपर न्योछावर शत-कोटि मनोज॥
देखा, रहे सहेज स्वयं निज कर-कमलोंसे बिखरे केश।
पौंछ रहे निज बसन स्वेद-कण, हु‌आ स्वप्नमें था उन्मेष॥
मिटा दुःख, छायी प्रसन्नता, बनी तुरत प्रियतम गल-हार।
उमड़ा लीलोदधि, लहराने लगीं लहरियाँ मधुर अपार॥
शयन-स्वप्न-जागरण न कुछ था, था बस शुद्ध प्रेम-वैचित्य।
लीलारत राधा-माधव ये रहते हैं वे जैसे नित्य॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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