जब प्यारी मन ध्यान धरयौ है -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री


जब प्यारी मन ध्यान धरयौ है।
पुलकित उर, रोमांच प्रगट भए, अंचल टरि मुख उघरि परयौ।।
जननी निरखि रही ता छबि कौं, कहन चहै कछु कहि नहिं आवै।
चकित भई अँग-अंग बिलोकति, दुख-सुख दोऊ मन उपजावै।।
पुनि मन कहति सुता काहू की, कै धौं यह मेरी ही जाई।।
राधा हरि कैं रंगहि राँची, जननि रही जिय मैं भरमाई।।
तब जानी मेरी यह बेटी, जिय अपनैं जब ज्ञान कियौ है।।
सूरदास प्रभु प्याैरी की छबि देखि, चहति कछु सीख दियौ है।।1713।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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