जब-जब मुरली कैं मुख लागत।
तब-तब कान्ह कमल-दल-लोचन, नख-सिख तैं रस पागत।।
पलकहिं माँझ पलटि से लीजत, प्रगटत प्रीति अनागत।
फरकत अधर बिंब, नासा पुट, सूधी चितवनि त्यागत।।
बात न कहत, रहत टेढे़ ह्वै, नहिं आलिंगन माँगत।।
सूरदास-स्वामी बंसी बस, मुरछे नैंकु न जागत।।1323।।