जनम सिरानौ ऐसैं-ऐसैं -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सारंग




जनम सिरानौ ऐसैं-ऐसैं।
कै घर-घर भरमत जदुपति बिनु, कै सोचत, कै बैसैं।
कै कहुँ खान-पान-रमनादिक, कै कहुँ बाद अनैसैं।
कै कहुँ रंक, कहूँ ईस्‍वरता, नट-बाजीगर जैसैं।
चेत्‍यौ नाहिं, गयौ टरि औसर, मीन बिना जल जैसैं।
यह गति भई सूर की ऐसी, स्‍याम मिलैं घौं कैसैं।।293।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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