जब तै प्रीति स्याम सौ कीन्ही।
ता दिन तै मेरै इन नैननि, नैकुहुँ नींद न लीन्ही।।
सदा रहै मन चाक चढ्यौ, सो और न कछू सुहाइ।
करत उपाय बहुत मिलिबे को, यहै विचारत जाइ।।
‘सूर’ सकल लागति ऐसोयै, सो दुख कासौ कहियै।
ज्यौ अचेत बालक की बेदन, अपनै ही तन सहियै।।1865।।