गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-8 : अध्याय 11
प्रवचन : 2
दैत्य लेबोरेटरी में रासायनिक क्रिया करके वस्तु को जानने का प्रयास करते हैं और देवता गणित के द्वारा प्रयत्न करते हैं। ये दो पद्धतियाँ हैं। संख्या कर लें तो सांख्य हो गया और निर्माण कर लें तो धर्म हो गया, कर्म हो गया। कोई भी कर्मबल अथवा बुद्धि बल से परमात्मा को नहीं जान सकता है। व्यक्ति माने अव्यक्त का व्यक्त होना। व्यक्त माने जाहिर होना। व्यक्ति माने जो व्यंजित हुआ है। परमात्मा की अभिव्यंजना का नाम यहाँ व्यक्ति है। गीता में यह बात कही गयी कि जो लोग परमात्मा व्यक्तिभाव को प्राप्त मानते हैं, वे बुद्धिमान् नहीं हैं। अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धय: ।[1] मैं हूँ अव्यक्त - अव्यक्त माने किसी भी रासायनिक प्रक्रिया के द्वारा या किसी भी प्रमाण के द्वारा जो ज्ञान न हो। प्रमाण-प्रधान होते हैं देवता और क्रिया-प्रधान होते हैं - देवता से जो इतर लोग हैं। हम आँख से देखते हैं यह प्रमाण हुआ। कान से सुनते हैं यह प्रमाण हुआ - बुद्धि से सोचते हैं यह प्रमाण हुआ। अपने आपमें अनुभव करते हैं यह प्रमाण हुआ और किसी वस्तु को सड़ाकर, गलाकर, कुछ मिलाकर - उसको जानना यह एक प्रक्रिया हुई। अब परमात्मा का जो व्यक्तित्व है वह क्या जैव सबका व्यक्तित्व है, वैसा ही है? अद्भुत लीला है इस व्यक्तित्व के बारे में। कोई लोग कहते हैं कि जैसा कर्म होता है, उसके अनुसार व्यक्ति का निर्माण होता है। कोई कहते हैं जैसा कारण होता है उसके अनुरूप व्यक्ति का निर्माण होता है। कोई कहते हैं जैसा निर्माण होता है उसके कारण व्यक्ति का निर्माण होता है। व्यक्ति के निर्माण के लिए बीज भी आवश्यक होता है। बीज में संस्कार होता है और उपादान भी आवश्यक होता है। वस्तु में संस्कार रहता है, वहाँ निमित्त भी होता है। जैसे पन्चभूत का उपादान है और उसमें बीज का वंशानुगत संस्कार है और माली ने उसकी कलम बाँध दी। एक दूसरी वस्तु का निर्माण हो गया। उपादान भी है, संस्कार भी है, निमित्त भी है। इमली के बीज से आम पैदा नहीं हो सकता। आम के बीज से इमली पैदा नहीं हो सकती। ये बीजगत संस्कार हैं और पन्चभूत रूप उपादान दोनों में है। अब दोनों की कलम करके अगर तीसरी चीज बनानी हो तो माली उनका संकर बनायेगा - मिश्रण करेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्लोक 7.24
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज