गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-12 : अध्याय 15
प्रवचन : 6
प्रश्न: जन्म के पूर्व और मृत्यु के उपरान्त, यह प्रश्न संसार के बुद्धिजीवियों के विचार-विमर्श में बराबर रहता है- मृत्यु ध्रुव है। यह ता संसार के सभी आस्तिक अथवा नास्तिक मानते ही हैं। लेकिन जहाँ हमारे यहाँ ‘ध्रुवं जन्म मृतस्य च’ स्पष्ट उद्घोष है, वहाँ संसार के अन्य धर्मावलम्बी अपने को भ्रम में ही पाते हैं। जीवन, मृत्यु और पुर्नजन्म की इस प्रक्रिया पर कुछ प्रकाश डालने की कृमा करें! उत्तर: जो वर्तमान जन्म को ठीक-ठीक समझ लेता है, वही जन्म के पूर्व की और मृत्यु के अनन्तर की स्थिति को समझ सकता है। वर्तमान जीवन ही जिसकी समझ में नहीं आया, वह पूर्व जीवन और उत्तर जीवन की कल्पना भी क्या कर सकता है? तत्त्व-दृष्टि जो है वह सर्वोत्तम होती है। कारण, हमेशा ही अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार कल्पित होता है। हमारा जन्म क्यों हुआ? ईश्वर की इच्छा से। तो ईश्वर की इच्छा किसी को पशु, किसी को पक्षी, किसी को मनुष्य, किसी को सुखी, किसी को दुःखी, किसी को लम्बा, किसी को नाटा, किसी को लँगड़ा, किसी को स्वस्थ-सुन्दर, ऐसे भिन्न-भिन्न रूप् में बनाने की क्यों इच्छा हुई? इसका उत्तर है कि जिसका जैसा पूर्व कर्म होता है, उसके अनुसार ईश्वर नया जन्म देता है। यदि अपनी मौज से ईश्वर को जन्म देता है, किसी को पशु, पक्षी, मनुष्य, सुखी, दुःखी, लँगड़ा, लूला, काना, आँख वाला बनाता है तो यह तो एक प्रकार की बड़ी उच्छृंखलता हुई। एक ही प्रकार के जीव, एक ही प्रकार के उपादान, एक ही बनाने वाला और तरह-तरह के बनाकर रख दे, किसी को सुखी, किसी को दुःखी, तो वह तो अन्याय होगा। इसलिए कर्म की अपेक्षा से ईश्वर जन्म देता है। जो पापी है उसको शूकर-योनि की प्राप्ति होती है और जिसके कर्म-पुण्य होते हैं, उसको देवयोनि, मनुष्य योनि की प्राप्ति होती है। ईश्वर को बनाने के लिए भी कोई अपेक्षा चाहिए, इसके लिए पूर्व-पूर्व कर्म की आवश्यकता होती है। मुसलमान और ईसाई मानते है कि ईश्वर स्वेच्छा से ही विषम सृष्टि बना देता है और वैदिक धर्म मानता है कि कर्मानुसार बनाता हो ईश्वर ही है, परन्तु जिसका जैसा कर्म होता है, उसके अनुसार बनाता है। कर्ह चीजें ऐसी होती हैं, जिनको हम बनाते नहीं है, बनी-बनायी मिलती हैं। जैसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, ये प्रलय के पूर्व भी होते हैं। प्रलय काल में बीज रूप से रहते हैं और सृष्टि काल में अंकुरित अथावा पल्लवित, पुष्पित, फलित वृक्ष के समान रहते हैं। और नींद तो सबको आती है। जागना भी सबको होता है, सपने भी सबको आते हैं। अब इनका जो सदुपयोग, दुरुपयोग है, वह कैसा है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज